धीरे धीरे सब दूर होते गए

April 9, 2018
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वो छोड़ के गए हमें,
न जाने उनकी क्या मजबूरी थी,
खुदा ने कहा इसमें उनका कोई कसूर नहीं,
ये कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी।

जीना चाहता हूँ मगर जिनदगी राज़ नहीं आती,
मरना चाहता हूँ मगर मौत पास नहीं आती,
उदास हूँ इस जिनदगी से, क्युकी उसकी यादे भी
तो तरपाने से बाज नहीं आती।

छोड़ गए हमको वो अकेले ही राहों में,
चल दिए रहने वो औरों की पनाहों में,
शायद मेरी चाहत उन्हें रास नहीं आई,
तभी तो सिमट गए वो गैर की बाहों में।

खुशियों से नाराज़ है मेरी ज़िन्दगी,
बस प्यार की मोहताज़ है मेरी ज़िन्दगी,
हँस लेता हूँ लोगों को दिखाने के लिए,
वैसे तो दर्द की किताब है मेरी ज़िन्दगी।

धीरे धीरे सब दूर होते गए
वक़्त के आगें मजबूर होते गए
रिस्तों में हमने ऐसी चोट खाई की
बस हम बेवफा और सब बेकसूर होते गए।

अब भी ताज़ा है ज़ख़्म सीने में,
बिन तेरे क्या रखा है जीने में,
हम तो ज़िंदा हैं तेरा साथ पाने को,
वरना देर कितनी लगती है ज़हर पीने में!

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