ख़ामोशियों के सिलसिले

April 6, 2017
545
Views

कब तक रह पाओगे आखिर यूँ दूर हमसे,
मिलना पड़ेगा कभी न कभी ज़रूर हमसे
नज़रे चुराने वाले ये बेरुखी है कैसी..
कह दो अगर हुआ है कोई कसूर हमसे|

हम दोनों ही डरते थे ,
एक दुसरे से बात करने से,
मैं, मोहब्बत हो गयी थी इसलिए ,
वो, मोहब्बत न हो जाये इसलिए।

चुपके चुपके पहले वो ज़िन्दगी में आते हैं
मीठी मीठी बातों से दिल में उतर जाते है
बच के रहना इन हुसन वालों से यारो
इन की आग में कई आशिक जल जाते हैं|

ख़ामोशियों के सिलसिले बढ़ते गए;
कारवाँ चलता रहा हम भी चलते गए;
ना उनको ख़बर, ना हमें उनकी फिकर;
ज़िंदगी जिस राह ले चली हम भी चलते गए।

किस्मत ने जैसा चाहा वैसे ढल गए हम,
बहुत संभल के चले फिर भी फिसल गए हम,
किसी ने विश्वास तोडा तो किसी ने दिल,
और लोगों को लगा कि बदल गए हम|

इत्तेफ़ाक़ से ही सही मगर मुलाकात हो गयी;
ढूंढ रहे थे हम जिन्हें आखिर उन से बात हो गयी;
देखते ही उन को जाने कहाँ खो गए हम;
बस यूँ समझो दोस्तो वहीं से हमारे प्यार की शुरुआत हो गयी|

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *